जीवन चक्र

कहीं तो गिरा होगा बीज सूखे फूलों से
मिट्टी में दबा होगा, एक आस में
कि बारिश की फुहार आएगी ईक दिन
जो देगी नमी ,मिटाएगी प्यास
फूटेगा बीज, खिलेगा पौध फिर से
ईक नए जीवन के लिए।।
इस आस में,दबे हुए ही सही
इंतजार में है फिर से खिलने को
दबे हुए ही सही, है जज्बा खिलने का
सीखा जो है उसने प्रकृति से रचना।
सजाना चाहता है अब प्रकृति को अपनी रचना से।
खिलना, बढ़ना और फिर बिछड़ कर
मिट्टी में दब जाना।
विधि की यही रीति है
जो जीवन चक्र पूरा करता है।

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