What is Autism

स्वलीनता (ऑटिज़्म) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिन्दी में इसे ‘आत्मविमोह’ और ‘स्वपरायणता’ भी कहते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह सब बच्चे के तीन साल होने से पहले ही शुरु हो जाता है। यह जन्म के समय या उसके शीघ्र बाद आरंभ होनेवाली एक जीवन-भर की विकलांगता है। इसके लक्षण जन्म से ही या बाल्यावस्था से नज़र आने लगतें हैं। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो की अपेक्षा असामान्य होता है। जिन लोगों को ऑटिज़्म है, उनके लक्षणों में परस्पर कुछ समानताएँ हो सकती हैं परन्तुवे सभी पूरी तरह एक जैसे नहीं होते, इसी कारण इसे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम (स्वलीनता स्पेक्ट्रम) कहते हैं।

इसके लक्षणों में शामिल हैं:
• सामाजिकता, भाषा और संवादशीलता की कला के विकास में भिन्नता।
• बहुत कम चीज़ों में रूचि और एक ही प्रकार के व्यवहार को बार-बार करना।
• संवेदनाओं संबंधी असामान्यताएँ , जैसेकि ध्वनियों से बच कर रहना या इधर-उधर अत्यधिक चलना-फिरना।
• अन्य बच्चों के मुक़ाबले सीखने और खेल-कू द में भाग लेनेमें भिन्नता।

कारण-

ऑटिज़्म होने के कोई एक कारण नहीं खोजा जा सका है। अनुशोधों के अनुसार ऑटिज़्म होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे-

• मस्तिष्क की गतिविधियों में असामान्यता होना,
• मस्तिष्क के रसायनों में असामान्यता,
• जन्म से पहले बच्चे का विकास सही रूप से न हो पाना आदि।
आत्मविमोह का एक मजबूत आनुवंशिक आधार होता है, हालांकि आत्मविमोह की आनुवंशिकी जटिल है और यह स्पष्ट नहीं है कि ASD का कारण बहुजीन संवाद (multigene interactions) है या दुर्लभ उत्परिवर्तन (म्यूटेशन)। आत्मविमोह मस्तिष्क के कई भागों को प्रभावित करता है, पर इसके कारणों को ढंग से नहीं समझा जाता। आमतौर पर माता पिता अपने बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों में ही इसके लक्षणों को भाँप लेते हैं।

ऑटिज़्म के मुख्य लक्षण-

आत्मविमोह को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है।

मुख्य लक्षणों में शामिल हैं सामाजिक संपर्क में असमर्थता, बातचीत करने में असमर्थता, सीमित शौक और दोहराव युक्त व्यवहार है।

ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते है, बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी होते हैं। इसके बावजूद वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते है।

आम धारणा के विपरीत, आटिस्टिक बच्चे अकेले रहना पसंद नहीं करते। दोस्त बनाना और दोस्ती बनाए रखना आटिस्टिक बच्चे के लिये अक्सर मुश्किल साबित होता है। इनके लिये मित्रों की संख्या नहीं बल्कि दोस्ती की गुणवत्ता मायने रखती है।

संवादशीलता

संवादशीलता अपनी आवश्यकताओं और माँगों को बता पाने तथा औरों को समझने की क्षमता हैं। संवादशीलता संबंधी कठिनाइयाँ उनके सामाजीकरण पर प्रभाव डालती हैं।

सामाजीकरण

सामाजीकरण का अर्थ है कि व्यक्ति समुदाय के अन्य लोगों से किस तरह के संबंध रखता है। ऑटिज़्म से ग्रस्त व्यक्तियों में सामाजिक नियमों का ज्ञान कम हो सकता है, वे अकेले खेलना पसंद करते हैं, वे नहीं जानते कि वे किसी खेल/गतिविधि में कैसे भाग ले सकते हैं।

व्यवहार

ऑटिज़्म से ग्रस्त व्यक्तियों के अक्सर अपने अलग तरीके होते हैं और वे कुछ गतिविधियों को बार-बार दोहराते हैं। ऐसा करने से उन् शाँहेंति और व्यवस्था का आभास होता है।

ऑटिज़्म से ग्रस्त अधिकांश व्यक्ति:
• नियमित दिनचर्या चाहते हैं
• परिवर्तन को पसंद नहीं करते
• किसी एक विषय में अत्यधिक रूचि रखते हैं
• असामान्य शारीरिक गतिविधियों का प्रदर्शन कर सकते हैं, जैसेकि हाथों को लगातार हिलाते रहना।

सेंसरी प्रोसेसिंग (इन्द्रियों से प्राप्त जानकारी के प्रति प्रतिक्रिया)

सेंसरी प्रोसेसिंग का मतलब है कि हमारा मस्तिष्क इन्द्रियों सेजानकारी कैसे प्राप्त करता है और फिर क्या प्रतिक्रिया करता है। सेंसरी प्रोसेसिंग में भिन्नता का बच्चे द्वारा घर, विद्यालय और समुदाय में सीखने और ठीक व्यवहार करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। ऑटिज़्म से ग्रस्त व्यक्ति निम्नलिखित परिस्थितियों में बहुत तीखी या सामान्य से कम प्रतिक्रिया का प्रदर्शन कर सकते हैं:
• शोर
• स्पर्श
• देखी गई जानकारी
• गंध
• स्वाद
• उनके आस-पास होनेवाली गतिविधि
• उनके आस-पास के लोग और वस्तुएँ।

पहचान

बाल्यावस्था में सामान्य बच्चों व ऑटिस्टिक बच्चों में कुछ प्रमुख अंतर होते हैं जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे कि-

• सामान्य बच्चे माँ का चेहरा देखते हैं व उसके हाव-भाव को समझने की कोशिश करतें है परन्तु ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे किसी से नज़र मिलाने से कतराते हैं,
• सामान्य बच्चे आवाजें सुनने से खुश हो जाते हैं परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे आवाजों पर ध्यान नहीं देते तथा कभी-कभी बधिर प्रतीत होते हैं,
• सामान्य बच्चे धीरे-धीरे भाषा-ज्ञान में वृद्वि करते हैं, परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे बोलने से कुछ समय बाद अचानक ही बोलना बंद कर देते हैं तथा अजीब आवाजें निकालते हैं,
• सामान्य बच्चे माँ के दूर होने पर या अनजाने लोगों से मिलने पर परेशान हो जाते हैं परन्तु औटिस्टिक बच्चे किसी के भी आने या जाने से परेशान नहीं होते,
• ऑटिस्टिक बच्चे तकलीफ के प्रति कोई क्रिया नहीं करते तथा उससे बचने की कोशिश नहीं करते,
• सामान्य बच्चे करीबी लोगों को पहचानते हैं तथा उनसे मिलने पर मुस्कुरातें है पर ऑटिस्टिक बच्चे कोशिश करने पर भी किसी से बात नहीं करते जैसे अपनी ही किसी दुनिया में खोये रहतें हैं,
• ऑटिस्टिक बच्चे एक ही वस्तु या कार्य में उलझे रहते हैं तथा अजीब क्रियाओ को बार-बार दोहरातें हैं जैसे ओगे-पीछे हिलना, हाँथ को हिलाते रहना, आदि,
• ऑटिस्टिक बच्चे अन्य बच्चो की तरह काल्पनिक खेल नहीं खेल पाते वह खेलने की बजाए खिलौनों को सूंघते या चाटतें हैं,
• ऑटिस्टिक बच्चे बदलाव को बर्दाशत नहीं कर पाते व अपने क्रियाकलापों को नियमानुसार ही करना चाहतें हैं
• ऑटिस्टिक बच्चे या तो बहुत चंचल या बहुत सुस्त रहते हैं,
• इन बच्चो में अधिकतर कुछ विशेष बातें होती हैं जैसे किसी एक इन्द्री (जैसे, श्रवण शक्ति) का अतितीव्र होना।

चिकित्सा

ऑटिज़्म को शीघ्र पहचानना और मनोरोग विशेषज्ञ से तुरंत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज है। ऑटिज़्म के लक्ष्ण दिखने पर मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, या प्रशिक्षित स्पेशल एजुकेटर (विशेष अध्यापक) से सम्पर्क करें। ऑटिज़्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है जिसके पूर्ण उपचार के लिए कोई दवा की खोज ज़ारी है, अतः इसके इलाज के लिए यहाँ-वहाँ न भटकें व बिना समय गवाएं इसके बारे में जानकारी प्राप्त करें।

ऑटिज़्म एक प्रकार की विकास सम्बंघित बीमारी है जिसे पूरी तरह तो ठीक नहीं किया जा सकता, परन्तु सही प्रशिक्षण व परामर्श के द्वारा रोगी को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है, जो उसे अपने रोज के जीवन में अपनी देखरेख करने में मदद करता है।

ऑटिज़्म से ग्रसित 70% वयक्तियों में मानसिक मन्दता पायी जाती है जिसके कारण वह एक सामान्य जीवन जीने में पूरी तरह से समर्थ नहीं हो पाते, परन्तु यदि मानसिक मन्दता बहुत अघिक न हो तो ऑटिज़्म से ग्रसित व्यक्ति बहुत कुछ सीख पाता है। कभी-कभी इन बच्चों में कुछ ऐसी काबिलियत भी देखी जाती हैं जो सामान्य वयक्तियों की समझ व पहुच से दूर होती हैं।

धन्यवाद्
 

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