prem kya hai

प्रेम क्या है? क्या प्रेम को शब्दों मे बयां किया जा सकता है? प्रेम और आकर्षण मे क्या अंतर है? आइए इसको जानते है।

क्या प्रेम आकर्षण से पैदा होता है? आज का युवा आकर्षण को प्रेम का नाम देता है। लेकिन असल मे प्रेम क्या है? क्या प्रेम आकर्षण के साथ जन्म लेता है? यह समझना जरूरी है।

असल मे प्रेम एक ऐसा एहसास है जिसे शब्दों मे बांधा नहीं जा सकता है। प्रेम भावनाओं का एक ऐसा स्वतंत्र भाव है जो बिना किसी शर्त के अपनों गुण और दोषों को समान रूम से स्वीकार करता है।

यह कहना गलत नहीं होगा की आकर्षण प्रेम का एक रूप है, लेकिन आकर्षण बाहरी तत्व पर निर्भर करता है। जब तक ये तत्व हमारे अनुसार होते है तब तक हम आकर्षित होते है और जब यह तत्व हमारी इच्छा के अनुरूप नहीं होते है तो हमारा आकर्षण कम होने लगता है।

आकर्षण चुंबक के समान होता है, चुंबक की विशेषता है की वह तत्व को अपनी ओर आकर्षित करती है। अक्सर बाहरी गुणों से आकर्षित होकर हम उसको प्रेम का नाम दे देते है। जबकि प्रेम किसी व्यक्ति की आंतरिक सुंदरता है। व्यक्ति के आंतरिक गुण कभी नहीं बदलते है जबकि बाहरी तत्व मे बदलाव एक न एक दिन तय है। सच्चा प्रेम आंतरिक सुंदरता पर आधारित होता है न की बाहरी सुंदरता पर।  

प्रेम कभी कम नहीं होता है और कभी बदलता नहीं है। प्रेम हमेशा शुद्ध पानी की तरह बहता है और हमेशा वही रहता है।

प्रेम मे कोई उम्मीद नहीं होती..जो बिना शर्त है, वही सच्चा प्रेम है। प्रेम शर्तों पर आधारित नहीं है। अगर कुछ अच्छा करने पर प्रेम बेहतर हो जाता है और कुछ बुरा होने पर पें कम हो जाता है तो यह प्रेम नहीं है, यह सिर्फ एक आकर्षण है।

कभी-कभी आप सिर्फ आकर्षण के कारण किसी के साथ प्रेम मे पड़ जाते है। लेकिन आपको यह समझने की जरूरत है की यदि आप सिर्फ किसी की बाहरी सुंदरता को देख कर किसी के साथ प्रेम मे पड़ गए है तो यह प्रेम नहीं सिर्फ और सिर्फ आकर्षण है।

एक सच्चा प्रेम आपसे कभी कुछ नहीं माँगता है। सच्चा प्रेम समय के साथ कभी नहीं बदलता है। बल्कि वक्त के साथ और मजबूत होता जाता है। सच्चा प्रेम हमेशा आपके अच्छे समय के साथ-साथ कठिन समय मे भी आपके साथ होता है। जब आप को महसूस होने लगे की आप किसी के साथ  à¤­à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रूप जुड़े है तो समाजिए की आपका प्रेम सच्चा प्रेम है, क्योंकि प्रेम एक दूसरे को भावनाओं के साथ जोड़ता है। प्रेम मे हम अपने साथी और प्रेम के विकास के बारे मे सोचते है उनकी तरक्की मे उनका साथ देते है उनको प्रोत्साहन देते है तो वह सच्चा प्रेम कहलाता है। प्रेम मे रिश्ते पतंग की उस डोर की तरह होने चाहिए जो आजादी से उड़ते तो है लेकिन एक गलत दिशा पर जाने पर आप उस  à¤¡à¥‹à¤° को खीच कर उसे एक सही दिशा देते है जिससे वो आपसे दूर न हो।

 

जो हर मोड पर हाथ थामे साथ खड़ा हो प्रेम वो विश्वास है।

जो तुम्हारी कमियों के साथ तुमको अपनाएं प्रेम वो अहसास है।

जो तुम्हारी गलतियों मे तुम्हारा साथ न देकर,

उसको सुधारने के लिए अपना हाथ दे प्रेम वो खूबसूरत साथ है।

प्रेम समर्पण है, प्रेम परित्याग है।

प्रेम निर्मल जल, तो सात फेरों की पवित्र आग है।

प्रेम प्रोत्साहन है, तो प्रेम प्रयास है।

प्रेम जीवन है, तो प्रेम सौभाग्य है।

 

Image Source:- Google

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