
- 24 Jan 2023
- Psy. Pallavi Mishra
papa
मेरे रूठने पर पापा
कैसे गुमसुम से हो जाते
नहीं मना पाने की विवशता
उदास आंखों में छुपाते।
मेरी हठ भरी मिजा़जी का
मैं बेशक दोषी हूं
पर ये भी जान लो पापा
अब हालात से समझौता कर लेती हूं।
कि जानती हूं ,मेरे रूठने पर
अब तुम मनाने ना आओगे,
मेरे हठ भरी मिजा़जी पर
अब आकर स्नेह ना दिखलाओगे।
जानती हूं मेरे रुठने पर
अब तुम मनाने ना आओगे।
याद आता है वो दिन
जब खा-पीकर मैं और भईया
बाट तुम्हारा तकते
कितना मीठा लगता वो निवाला
जो तुम्हारे हाथों से चखते।।
कैसे खुद खाने से पहले
हम दोनों को बगल बिठाते।
छोटी-छोटी कामयाबी पर
कैसे तुम खुश हो जाते!!
पापा अब तुम देखो ना,मैं और भईया
बड़ी-बड़ी उपलब्धि पाते।
पर विवशता अब है मेरी
किि स्वर्णिमता से भरे ये लम्हें ,तुम्हें कैसे दिखलाऊं–२
पांव छूकर अब मैं तुम्हारा आशीष कैसे पाऊं-२