kitna badal gaya insaan

कितना बदल गया इंसान

जिन आखों मे कभी लज्जा हुआ करती थी, आज उन आखों में घमंड दिखता है।

जिन चहेरो पर कभी शर्म, हया, और मासूमियत हुआ करती थी, आज उन चहेरो पर धोखा, फरेब, और स्वार्थ झलकता है।

जिन वस्त्रों मे कभी सभ्यता  झलकती थी आज उनपर असभ्यता की चादर पड़ी है।

जिन वाणी से संस्कार झलकते थे उस वाणी मे कटुलता और अहम झलकता है।

जिन भुजाओं से हमे हमारे भारतीय संसार की नई ज्योति और नए विचारों का उजाला मिलता था, आज वो संस्कार उन्ही भुजाओं के साथ वृद्धाश्रम  मे या तो घर के किसी कोने मे आखिरी सांस ले रहे है। 

जिन पुरुषो मे महिलाओं के प्रति आदर और सम्मान झलकता था, आज उनमे अभद्रता, तिरस्कार, कटाक्ष और भोग की वासना झलकती है।

जिन लहेजो मे दया, धर्म, दान किसी व्यक्ति के कल्याण के लिए किया गया एक कार्य हुआ करता था, आज वो दान, धर्म, और मदद कैमरे मे सेल्फ़ी लेने का और नाम करने का जरिया मात्र रह गया है।

कितना बदल गया है, इंसान और उसकी इंसानियत ।

और हम बात करते है युगनिर्माण की, किस आधार पर हम नव युग निर्माण कर रहे जहां धर्म तो है पर इंसान इंसान से बचने के लिए, जहां संस्कार तो है पर उनकी कोई मर्यादा नहीं होती।

बड़ों के साथ समय व्यतीत करें, अपने संस्कारों और भारतीय सभ्यता की गहनता को समझे, जाने और अपनाए फिर देखिए आपका नजरिया और समझ से कैसे नव युग निर्माण होता है।

 आधुनिक जीवन और आधुनिक विचारों को अपनाने मे कोई बुराई नहीं है लेकिन यदि इस आधुनिकता से हमारे रिश्तों मे एक बुरा प्रभाव पड़ रहा है तो यह सोचने की बात है।      

 

Image Source:- Google

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