• 01 Feb 2023

मंजिल

एक नई सोच , नया जोश

उमड़ता है मेरे मन में,

जब एक बच्चे को,

देखती हूं कंकड़ का ठेला खींचते हुए।

बरबस यह प्रश्न कौंधता है,

क्या खींच रहा है ये?

अपनी जिंदगी ,अपना बचपन!!

बड़ी हिम्मत और ताकत से ,बहुत जल्द।

हर कदम है उसके अडिग ,आगे बढ़ते हुए

और बचपना पीछे छोड़ते हुए।

उस अबोध ने अपनी मंजिल

शाम तक खनकते पैसे का पाना ही समझ रखा है।

फिर एक नई सोच, नई चाह

उमड़ता है मेरे मन में,

जब देखती हूं उसे अपने मंजिल तक पहुंचते हुए

मुट्ठी में भरे चंद सिक्कों की खनक से

सुकून की सांसे लेते हुए।

एक नई सोच, नया बदलाव की चाह,

उमड़ता है मेरे मन में

कि मेरी मंजिल अब भी मुझसे दूर है।

कुछ देर पहले,

मैं अपने हाथों में कागज की डिग्री लिए

मुस्कुरा कर सुकून की सांसें ले रही थी।

लेकिन फिर एक नई सोच, नया जोश उमड़ता है,

मेरे मन में…

और चल पड़ती हूं कर्म पथ पर

बदलाव दृढ़ वादों के संग

एक नई सोच , नया जोश उमड़ता है मेरे मन में…।।

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